वह साहू जैन से निकल कर ‘अजंता ऑफसेट प्रेस ' में लग गया था।
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अपना ऑफसेट प्रेस होने की वजह से उनके कई खर्च बच गए और पुस् तकों के अन् य संस् करण निकालने में भी आसानी होगी.
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इसलिए आवश् यक है, इस क्षेत्र में निजी निवेशकर्ताओं की अन्यथा एक ही साथ आरम्भ हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन आज पांच दशक बाद नेपाली पत्र-पत्रिकाओं से आकाश-पाताल की दूरी पर नहीं रहता जबकि निकटवर्ती भारतीय क्षेत्र से करोड़ों रूपये मूल्य के हिन्दी पत्र-पत्रिकायें नेपाल में खपत होती है तो फिर नेपाल से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं का उत्थान क्यों नहीं होगा? किन्तु उस दैनिक को छोड़कर किसी के पास लेटर प्रेस तक नहीं है फिर ऑफसेट प्रेस की बात तो दूर होने पर नेपाल के हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के विकास कब और कैसे होंगे ।